Wednesday 28 December 2011
Thursday 15 December 2011
बदलाव...
आजकल कोई हँसकर नहीं मिलता,
गले मिलकर भी कोई दिल नहीं मिलता
किस तरह समेटा है तूफां ने समन्दर को,
कश्ती को डूबता मुसाफिर नहीं मिलता
वो नादाँ है,इंसां पे ऐतवार करता है,
वक़्त पड़ जाये तो,ख़ुदा भी नहीं मिलता
आसमां को छू रहे हैं,पत्थरों के मकां,
बच्चों को अब खेलने, मैदां नहीं मिलतामाँ,तू सच कहती थी,नादान को प्यार मत करना,
दिल टूटेगा तो फिर कोई नादान नहीं मिलता
-kumar
Wednesday 23 November 2011
कुछ और....
सोचा था कुछ और मंजिल कुछ और हो गई,
जिस महफ़िल में हम गये,वही रुस्बा हो गई
राह ए मोहब्बत्त में,हमने निभाई हर सदा,
उनके लिए हर सदा,बस इक अदा हो गई
उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई
उनके हर इक सितम को चुपचाप हमने सह लिया,
लेकिन हम पर सितम करना उनकी आदत हो गई
अपने लहू के रंग से लिखे थे कुछ यादों के गीत,
उन्होंने कर दी दुआ,और बरसात हो गई
-kumar
Tuesday 1 November 2011
असर
अब वो मुझमें कमियाँ बताने लगा है,
चाहता है या फिर सताने लगा है ?
अजनबी थे तो दोनों तरफ जिंदगी थी,
अब वो हर बात अपने ढंग से बताने लगा है
कभी ये शर्त थी कि मुझे मेरे नाम से बुलाना,
अब वो सब नाम मुझे खुद से बताने लगा है
कुछ रोज तक खुदा सी इज्ज़त देता था मुझे,
अब वो प्यार से,मुझे पागल बताने लगा है
ये किस तरह का मर्ज़ पाल बैठे हो "कशिश"
अब वो हर दुआ बेअसर बताने लगा है
-kumar
Wednesday 12 October 2011
Sunday 18 September 2011
काश यूँ होता....
आज मैने अपनी एक प्यारी सी दोस्त की कुछ ऐसी बातें यहाँ लिखने की कोशिश की है जिन्होंने हर बार मुझे कुछ सोचने पर मजबूर किया है मेरी इस दोस्त को “albinism” है पर ना तो उसे खुद से कोई शिकायत है ना खुदा से.....शिकायत है तो बस....वक़्त से......
एक सीधी सादी लड़की जो खुद में सिमटी रहती है,
बातें उसकी रेशम सी, पर हरदम उलझी रहती है
यूँ तो बहुत बहादुर है पर डरती है उन लोगों से,
जो उसको समझ नहीं पाते वो चिढती है उन लोगों से
वो मुझसे पूछा करती है ,वो लोग कहाँ पर मिलते हैं ?
जो इन्सानी ज़ज्बातों को बिन चेहरा देखे पढ़ते हैं
कभी कभी वो कहती है कि मन नहीं करता जीने को ,
हंसती नज़रें कुछ कहती है तब मन नहीं करता जीने को
वो अक्सर पूछा करती है ,क्या रिश्ते बोझिल होते हैं ?
क्यूँ चेहरे रोज बदलते हैं और दिल बेवस हो रोते हैं
वो कहती है मुझको यूँ ही बोझिल होकर नहीं जीना है ,
बस तन्हा तन्हा रहकर अपने अश्कों को पीना है
उसकी इन सब बातों के मेरे पास जवाब नहीं होते ,
ऐ काश खुदा ! इस दुनियां में सब लोग उसी जैसे होते .....
- kumar
Thursday 25 August 2011
तेरे बारे में....
ज़ख्म दिल में बसे हैं,दिखाऊँगा कैसे ?
तू बेवफा तो नहीं था जो वादे से मुकर गया,
मगर ये सच ज़माने को सुनाउँगा कैसे ?
तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो जज़्बात अब फिर से सजाऊँगा कैसे ?
कह पाता, तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज उसे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
- कुमार
Thursday 18 August 2011
बढ़े चलो
मार भगाओ चोरों को अब हिन्दुस्तान हमारा है
बंद करो ये लूट खसोट,बंद करो ये घोटाले
राजी से ना गए अगर,तो होंगे सब के मुंह काले
आम आदमी जाग उठा है,आगे भी मत पड़ जाना
इतिहास बनाकर रख देंगे सब को है यह बतलाना
जनता का होगा राज जहाँ ऐसा क़ानून बनायेंगे
विश्व पटल पर तब हम सच्चे लोकतंत्र कहलायेंगे
- kumar
बंद करो ये लूट खसोट,बंद करो ये घोटाले
राजी से ना गए अगर,तो होंगे सब के मुंह काले
आम आदमी जाग उठा है,आगे भी मत पड़ जाना
इतिहास बनाकर रख देंगे सब को है यह बतलाना
जनता का होगा राज जहाँ ऐसा क़ानून बनायेंगे
विश्व पटल पर तब हम सच्चे लोकतंत्र कहलायेंगे
- kumar
Tuesday 9 August 2011
मज़हब
हिन्दू का चोला ओढकर
चला जाय लोगों के बीच ...
देखा,कटा फटा टँगा है दीवार पर
दौड़कर गया मुस्लिम के घर,
सब नदारद ...
हवाएं धमका रहीं थी सन्नाटे को
उम्मीद के खम्भे पर चढ़करएक दो घर और झाँका,
सब चूल्हे धूल से सने पढ़े थे ...
बोझिल कदम फटकारने लगे वापस घर ...
अचानक ध्यान गया चौखट पर
तो देखा
सारे मज़हब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं......
- kumar
Saturday 30 July 2011
मुलाक़ात
कुछ पल तो हँसने दे मुझे,ना उदास कर
तू घर जाने की बातें,ना बार बार कर
दो लम्हे बीते होंगें,साथ बैठे हुए
तू सदियों की बातें,ना बार बार कर
अभी डूबना बाकी है तेरी आँखों में मेरा
तू नज़रें झुका के बातें,ना बार बार कर
इन कांपते लबों को कहने दे आज सब
तू जमाने की बातें,ना बार बार कर
मैं फूल हूँ,जुल्फों में रख,महकता रहूँगा
तू घर सजाने की बातें,ना बार बार कर
kumar
Friday 22 July 2011
माँ ....
एक अरसा हो गया माँ,
तेरे हाथ के मोटे मोटे रोट खाये हुए
वो गीले उपलों को जलाने की जद्दोजहद में
तेरे आंचल का गीला होना
अब भी याद है मुझे...
एक अरसा हो गया माँ,
सिर पर तेरा हाथ महसूस किये हुए
जो चादर तूने दी थी,
मेरे घर से चलते समय
उसकी तहें अब तक लिपटी पङी हैँ.....
एक अरसा हो गया माँ,
मुझे रोये हुए
अपने हाथों से मेरे आंसू पोंछते वक्त
ना रोने की इक कसम दी थी तूने,
वो अब तक सँभाल रखी है मैने.....
एक अरसा हो गया माँ,
खुदा को देखे हुए,
एक अरसे से मैं बस यूँ ही जी रहा हूँ माँ.....
kumar
Saturday 16 July 2011
ना जाने कब ?
ना जाने कब तक बेबस ज़िन्दगी तबाह होती रहेगी ?
ना जाने कब अमन का सूरज अपनी धूप इस जमीं पर बिखेरेगा ?ना जाने कब लौटेगा वो शख्स जो गया था यह कहकर कि " बस अभी आया " ?
रह रहकर बस यही खयाल आता है कि -
ऐ खुदा तू भूख को भी बम बना देता
तो हर शख्स सर से कफन हटा देता ।
हमसे पूछो पल पल मरने का सबब
काश कोई यूँ ही गर्दन दबा देता ।
ग़र यूँ ही मरना है तो क्या परिबार क्या बच्चे
क्या कशिश कोई माँ का आँचल ओढा देता ?
हजारों काम हैं करने पर किसको करूं पहले ?
मुझे ऐ काश कोई मौत का दिन ही बता देता ।
ये दर्द ना होता इस मासूम शहर में
ग़र काफ़िरों को वो अपना ईमां नहीं देता ।
-kumar
Thursday 7 July 2011
खलिश
बङा अजीब System है life का भी। कुछ भी मिल जाये,फिर भी एक कमी सी महसूस होती रहती है,एक खलिश सी बनी रहती है ।और ये खलिश भी क्या कमाल,जिसका ना कोई इलाज,ना कोई अन्त ।बस एक एहसास होता रहता है जिन्दा होने का ।और इसी एहसास में उम्र गुजर जाती है.......
ज़िंदगी तुझसे शिकायत भी है,और है गिला,
बहुत कुछ दिया तूने,बस कुछ भी न मिला
कुछ को मिल गया बेवक़्त गुलाबों का शहर,
मुझे चुभते हुए काटों का चेहरा भी न मिला
एक उम्मीद थी सो जल गया तेरी शम्मे में,
पर आँधियों को तब तक मेरा खत भी न मिला
किसने कहा इन्सां में खुदा बसता है,
बहुत ढूंढा मगर मुझको पत्थर भी न मिला
फकत ईटों के बने हैं इस शहर के मकां सारे,
क्यूँ आज तक मुझे मेरा घर भी न मिला ?
सच बोलकर सबको,दुश्मन बना लिया,
इस रूह को अब तक कोई खंजर भी न मिला
अपनी जात में अब तक,मैं खुद से बाकिफ था मगर,
मिला हर जगह आईना,क्यूँ पत्थर भी न मिला ??
ज़िंदगी तुझसे शिकायत भी है,और है गिला,
बहुत कुछ दिया तूने,बस कुछ भी न मिला
कुछ को मिल गया बेवक़्त गुलाबों का शहर,
मुझे चुभते हुए काटों का चेहरा भी न मिला
एक उम्मीद थी सो जल गया तेरी शम्मे में,
पर आँधियों को तब तक मेरा खत भी न मिला
किसने कहा इन्सां में खुदा बसता है,
बहुत ढूंढा मगर मुझको पत्थर भी न मिला
फकत ईटों के बने हैं इस शहर के मकां सारे,
क्यूँ आज तक मुझे मेरा घर भी न मिला ?
सच बोलकर सबको,दुश्मन बना लिया,
इस रूह को अब तक कोई खंजर भी न मिला
अपनी जात में अब तक,मैं खुद से बाकिफ था मगर,
मिला हर जगह आईना,क्यूँ पत्थर भी न मिला ??
-kumar
Tuesday 5 July 2011
इन्तजार
क्या खूब खिलौने जुटा रखे हैं
बालू के ढेर पर,इस बच्चे ने
कुछ गारे की परतें,कुछ बिखरती ईटों के टुकङे
सुलगते लू के थपेङे भी बहला रहे हैं धीरे धीरे
सूखती आँखों को बस इन्तजार है
उस दीबार के पूरे होने का
फिर तकती नजर रोयेगी
और दौङकर आयेगी माँ
छोङकर फाबङे को
फिर बरसेगी ममता टूटकर
और बह जायेँगे झूठे खिलौने......
kumar...
Saturday 2 July 2011
काश...
काश ऐसी कोई जगह होती
जहाँ बस मैं और तुम होती
समंदर का किनारा होता और खामोश लहरें होती
शाम के ढलते सूरज में,गहरी लालिमा होती
पक्षियों के काफिले की मीठी चहकन होती
हर तरफ अन्धेरा,आसमां में रौशनी होती
सूखें पत्तों का बिछौना,हबाओं की चादरें होती
तेरी गोद में मेरा सिर और उस पर घनी ज़ुल्फें होती
आँखों में ठहराव और बालों में उगलियाँ होती
धीमी बरसती बूंदें और साँसों में तपिश होती
हय़ा से भीगे लबों पे एक शर्माती चुभन होती
लम्हा लम्हा गिरवीं होता और बक्त की जमानत होती
बस ज़िन्दगी सिमटकर ये हसीं ख़्वाब होती
काश ऐसी कोई जगह होती
जहाँ बस मैं और तुम होती...
-kumar
Monday 27 June 2011
प्रेम
अब सब कुछ ओस की तरह लगता है,
सब नया,निर्मल,
अंकुरित होते पौधे जैसा...
एक ठहराव सा है...
ह्रदय के भँवर में उठने बाली,
भावनाओं की लहरें
अब असमर्थ हैं,
उम्मीद की दीवारों पर,
उस प्रतिध्वनि को उत्पन्न करने में,
जिसके शोर में भ्रमित होकर,
मैँ भटकता था इधर उधर...
जो मन रूपी पक्षी,
उन्मुक्त हो,
उड़ता था अनंत आकाश में,
वो अब लिपटा पड़ा है अस्तित्वहीन डाल से...
कल तक जो नकारता था हर अस्तित्व को,
आज वही,
निराकार का सृजन करने में लगा है...
यह कोई बदलाव नहीं है,
ना पुर्नजन्म है...
बस,
अब मेरे अंदर एक दीप जल उठा है,
प्रेम का...
कुछ बीज अंकुरित होने लगे है,
मिलन के...
-Kumar .
Thursday 16 June 2011
नादान
मेरी परछाई को देखकर तू खफा हो गया
ऐ नादान सँभल,मुहब्बत की भी हद होती है
जाना है तो फिर क्यूँ पलटता है बार बार
ऐ नादान सँभल,मुङने की भी हद होती है
कुछ कहकर फिर से चमन में बहार ला दे
ऐ नादान सँभल,अदाऔं की भी हद होती है
मत सोच मेरी मैं तो सदियों से प्यासा हूँ
ऐ नादान सँभल,अश्क बहने की भी हद होती है
मेरे साथ कयामत तक ना चल पाया तो
ऐ नादान सँभल,कसम देने की भी हद होती है ।
kumar...
Monday 13 June 2011
माँ ....
ये घर बीरान सा लगता है
खिलौनों की आहटों को नजर लगाई किसने
वो सह लेती है हर बात खामोशी से
अब मै बङा हो गया हूँ माँ के लिएमेरे घर देर से आने पर भी नाराज नहीँ होती
अब याद रहता है उसे अपने खाने का वक्त
मेरी तनख्वा को कभी पूछा नहीँ उसने
अब मैँ अब बङा हो गया हूँ माँ के लिए
आज सबकुछ होकर बस ख्वाब नहीँ आँखों मेँ
वो वक्त,वो खिलौने,वो बचपना कैसे दूँ बापस
अब मैँ अब बङा हो गया हुँ माँ के लिए......
kumar
Friday 10 June 2011
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
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एक अरसा हो गया माँ, तेरे हाथ के मोटे मोटे रोट खाये हुए वो गीले उपलों को जलाने की जद्दोजहद में तेरे आंचल का गीला होना अब भी याद है मुझे....
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
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आज मैने अपनी एक प्यारी सी दोस्त की कुछ ऐसी बातें यहाँ लिखने की कोशिश की है जिन्होंने हर बार मुझे ...