Sunday 18 September 2011

काश यूँ होता....


आज  मैने अपनी  एक  प्यारी  सी  दोस्त  की  कुछ  ऐसी बातें  यहाँ  लिखने  की  कोशिश  की  है  जिन्होंने  हर  बार  मुझे  कुछ  सोचने  पर  मजबूर  किया  है मेरी  इस  दोस्त  को  “albinism” है  पर  ना  तो उसे  खुद  से  कोई  शिकायत है  ना  खुदा  से.....शिकायत  है  तो  बस....वक़्त  से......


एक  सीधी  सादी  लड़की  जो  खुद  में  सिमटी  रहती  है,
बातें   उसकी  रेशम  सी, पर  हरदम उलझी  रहती  है

यूँ  तो  बहुत  बहादुर  है  पर  डरती  है  उन  लोगों  से,
जो  उसको  समझ  नहीं  पाते  वो  चिढती  है  उन  लोगों  से

वो  मुझसे  पूछा  करती  है ,वो  लोग  कहाँ  पर  मिलते  हैं  ?
जो  इन्सानी  ज़ज्बातों  को  बिन  चेहरा  देखे  पढ़ते  हैं

कभी  कभी  वो  कहती  है  कि  मन  नहीं  करता  जीने  को ,
हंसती  नज़रें  कुछ  कहती  है  तब  मन  नहीं  करता  जीने  को

वो  अक्सर  पूछा  करती  है ,क्या  रिश्ते  बोझिल  होते  हैं  ?
क्यूँ  चेहरे  रोज  बदलते  हैं  और  दिल  बेवस  हो  रोते  हैं 

वो  कहती  है  मुझको  यूँ  ही  बोझिल  होकर  नहीं  जीना  है ,
बस  तन्हा तन्हा  रहकर  अपने  अश्कों  को  पीना  है 

उसकी  इन  सब  बातों  के  मेरे  पास  जवाब  नहीं  होते ,
  काश  खुदा  ! इस  दुनियां  में  सब  लोग  उसी  जैसे  होते .....

- kumar

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द