कशिश
सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की...
Tuesday 13 September 2016
जमीं पे कर चुके कायम हदें,
चलो अब आसमां का रुख करें
- अरविन्द
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
माँ ....
एक अरसा हो गया माँ, तेरे हाथ के मोटे मोटे रोट खाये हुए वो गीले उपलों को जलाने की जद्दोजहद में तेरे आंचल का गीला होना अब भी याद है मुझे....
(no title)
जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
काश यूँ होता....
आज मैने अपनी एक प्यारी सी दोस्त की कुछ ऐसी बातें यहाँ लिखने की कोशिश की है जिन्होंने हर बार मुझे ...