Tuesday, 9 August 2011

मज़हब


मन किया कि आज ...
हिन्दू का चोला ओढकर
चला जाय लोगों के बीच ...
देखा,कटा फटा टँगा है दीवार  पर
दौड़कर गया मुस्लिम के घर,
सब नदारद ...
हवाएं धमका रहीं थी सन्नाटे को
उम्मीद के खम्भे पर चढ़कर
एक दो घर और झाँका,
सब चूल्हे धूल से सने पढ़े थे ...
बोझिल कदम फटकारने लगे वापस  घर ...
अचानक ध्यान गया चौखट पर
तो देखा
सारे मज़हब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं......

- kumar

30 comments:

Rashmi Garg said...

bahut khoob...mujhe vo panktiyan yaad aa gyi..

aisa koi mazhab chalaayaa jaaye....
jisme insan ko insan banaayaa jaaye.....

chandra said...

bahut accha arvind ji, aapka star lagataar badta jaa raha hai

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

wah!

SAJAN.AAWARA said...

Ham insaan nahi hai..........
Ha ha ha
sahi hi likha hai apne, khota ja raha hai insaan ka vajood,kyunki insaan ab setan wale kaam karne laga hai....
Jai hind jai bharatHam insaan nahi hai..........
Ha ha ha
sahi hi likha hai apne, khota ja raha hai insaan ka vajood,kyunki insaan ab setan wale kaam karne laga hai....
Jai hind jai bharat

devendra gautam said...

bahut khoob kumar sahab! thode me'n bahut gahri baat kah gaye hain aap.

Vivek Jain said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने,
बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सारे मजहब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं......

Sunder.... Gahara arth liye panktiyan...

manjusha.deshpande said...

bhot he behatarin.lajbab

रश्मि प्रभा... said...

insaan banna aasan nahi , nafrat, dwesh, swa ko bhulana aasan nahi ... to hum insaan ho hi nahi sakte

संजय भास्‍कर said...

कई प्रश्न उठाती है...आपकी कविता

सागर said...

gahan chintan karati rachna...

Yashwant R. B. Mathur said...

सारे मजहब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं......

कमाल की पंक्तियाँ हैं।

सादर

Anju (Anu) Chaudhary said...

सोचने को मजूबर करती रचना

Maheshwari kaneri said...

सारे मजहब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं...बहुत सुन्दर भाव.....

Vandana Ramasingh said...

सारे मजहब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं......
जब मजहब इंसान को नकारने लगे तो सोचने का वक़्त आ ही गया है

amrendra "amar" said...

गहरे भाव के साथ बहुत ख़ूबसूरत कविता ,लाजवाब प्रस्तुती!

Kailash Sharma said...

गहन भाव लिए बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

S.N SHUKLA said...

रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ........

kshama said...

Swatantrata Diwas kee anek mangal kamnayen!

Urmi said...

सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Yashwant R. B. Mathur said...

स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।

कल 17/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

रश्मि प्रभा... said...

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/08/blog-post.html

vandana gupta said...

वाह गज़ब कर दिया।

Anupama Tripathi said...

oh..!!gahan ...arth...!!
shubhkamnayen.

Nidhi said...

आदमी का आदमी बना रहना ही सबसे मुश्किल है........

हरकीरत ' हीर' said...

मैं भी गाने की कोशिश कर रही हूँ ....
हम इंसान नहीं हैं ......
लाजवाब रचना ...
बधाई ...

siddharth said...

Mast laga dost......

virendra sharma said...

अचानक ध्यान गया चौखट पर
तो देखा
सारे मजहब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं.......

कुमार साहब कोई रचना इतनी सशक्त हो सकती है .सोचा नहीं जा सकता .




http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
पन्द्रह मिनिट कसरत करने से भी सेहत की बंद खिड़की खुल जाती है .
. August 16, 2011
उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
त्रि -मूर्ती से तीन सवाल .

ZEAL said...

Great creation indeed !

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द