Monday, 4 July 2011

उम्मीद


हर बार उम्मीद में गिरफ़्तार होकर
कुरेदता हूँ
सूखी परतों को
कभी तो ये नन्ही उगलियाँ
मीलों नीचे दबे सच तक पहुँचेगीं....

kumar...

10 comments:

संजय भास्‍कर said...

आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

संजय भास्‍कर said...

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
http://www.sanjaybhaskar.blogspot.com/

Rashmi Garg said...

aapki ye rachna shabdon ki drishti se jitni sukshm prateet ho rahi hai...arth ki drishti se utni hi gahan hai....gaagar mein saagar samaa gayaa hai....

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 23/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Vandana Ramasingh said...

अर्थपूर्ण रचना

रजनीश तिवारी said...

उम्मीद पर दुनिया कायम है ...सुंदर

सदा said...

बहुत खूब ।

vidya said...

बहुत सुन्दर...
लाजवाब कवितायेँ हैं आपकी ...
शुभकामनाएं.

vandana gupta said...

बेहद गहन अभिव्यक्ति।

Nidhi said...

काश आप सच तक पहुंचें...

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द