Monday, 4 July 2011

तुम....


एक जमाने के बाद होठों ने कुछ नमकीन चखा है
कितना वक्त लगा रहीं थीं ये बूँदें
गालों के रेगिस्तान को तर करने में
आज फिर सजग हो उठे हैं
अतीत के पहरेदार
आज फिर तुम
यादों की चौखट पर दस्तक देकर गुजर गये.....

kumar

5 comments:

संजय भास्‍कर said...

बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…

Ravi Rajbhar said...

ye yade to bas yade hi hain bandhu,,

Rashmi Garg said...

laajawab.....

मीनाक्षी said...

क्षणिका मन को तर कर गई...लाजवाब ..

shephali said...

बहुत मीठी मीठी ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
आके कुछ ग़मों की नाम्कीनियाँ दे दो

b'ful
vry b'ful

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द