Wednesday, 28 December 2011

ज़ुर्रत



आज वक़्त से आँखें मिला ही लीं,
और जान लिया वजूद को...
जिसके भरोसे...
अब तक पटकता रहा,
उम्मीदों के पैर...
वो भी झूठी तसल्ली सा निकला....

-kumar

16 comments:

Nidhi said...

वो भी झूटी तसल्ली सा निकला...क्या बात कह दी,कुमार.बहुत खूब.

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत खूब बॉस !

vidya said...

very very nice....

Rashmi Garg said...

very touching....

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह ..जिंदगी का सार लिख दिया

रेखा said...

वह ...बहुत खूब

संध्या शर्मा said...

आज वक़्त से आँखें मिला ही लीं,
और जान लिया वजूद को...
waah... very nice...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या बात है... बहुत खूब...
सादर...

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

गहरी बात

मेरा मन पंछी सा said...

आज वक़्त से आँखें मिला ही लीं,
और जान लिया वजूद को...
bahut sundar bhav ...

अनामिका की सदायें ...... said...

thode me hi bahut kuchh.

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन .... लाजवाब . इस खुबसूरत रचना के लिए क्या कहूँ ......?आपको बधाई ....

Kailash Sharma said...

बहुत खूब! कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनायें!

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढि़या

नववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।

Dr.NISHA MAHARANA said...

बहुत खूब .

प्रेम सरोवर said...

रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द