Wednesday, 28 December 2011
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
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कुछ पल तो हँसने दे मुझे,ना उदास कर तू घर जाने की बातें,ना बार बार कर दो लम्हे बीते होंगें,साथ बैठे हुए तू सदियो...
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क्या मज़ाक चल रहा है परिंदों के बीच, आसमां को दौड़ का मैदान बना रखा है बड़ी हसरत थी उसे टूटकर बरसने की, मगर हौँसले ने उसे ...
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तेरे बारे में सबको बताऊँगा कैसे ? ज़ख्म दिल में बसे हैं,दिखाऊँगा कैसे ? तू बेवफा तो नहीं था जो वादे से मुकर गया, मगर ये सच ज़...
16 comments:
वो भी झूटी तसल्ली सा निकला...क्या बात कह दी,कुमार.बहुत खूब.
बहुत खूब बॉस !
very very nice....
very touching....
वाह ..जिंदगी का सार लिख दिया
वह ...बहुत खूब
आज वक़्त से आँखें मिला ही लीं,
और जान लिया वजूद को...
waah... very nice...
क्या बात है... बहुत खूब...
सादर...
गहरी बात
आज वक़्त से आँखें मिला ही लीं,
और जान लिया वजूद को...
bahut sundar bhav ...
thode me hi bahut kuchh.
बेहतरीन .... लाजवाब . इस खुबसूरत रचना के लिए क्या कहूँ ......?आपको बधाई ....
बहुत खूब! कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनायें!
वाह ...बहुत ही बढि़या
नववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
बहुत खूब .
रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
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