Saturday 16 July 2011

ना जाने कब ?

ना जाने कब तक बेबस ज़िन्दगी तबाह होती रहेगी ?
ना जाने कब अमन का सूरज अपनी धूप इस जमीं पर बिखेरेगा ?
ना जाने कब लौटेगा वो शख्स जो गया था यह कहकर कि " बस अभी आया " ?
रह रहकर बस यही खयाल आता है कि -



ऐ खुदा तू भूख को भी बम बना देता
तो हर शख्स सर से कफन हटा देता ।

हमसे पूछो पल पल मरने का सबब
काश कोई यूँ ही गर्दन दबा देता ।

ग़र यूँ ही मरना है तो क्या परिबार क्या बच्चे
क्या कशिश कोई माँ का आँचल ओढा देता ?

हजारों काम हैं करने पर किसको करूं पहले ?
मुझे ऐ काश कोई मौत का दिन ही बता देता ।

ये दर्द ना होता इस मासूम शहर में
ग़र काफ़िरों को वो अपना ईमां नहीं देता ।

-kumar

26 comments:

Shalini kaushik said...

हजारों काम हैं करने पर किसको करूं पहले ?
मुझे ऐ काश कोई मौत का दिन ही बता देता ।
बहुत खूब कुमार जी याद आ गयी ये पंक्तियाँ
''मौत का एक दिन मुअय्यन है,नींद क्यों रात भर नहीं आती .

tamanna said...

बहुत ख़ुब लिखा है आपने.... बस बेवस के जगह बेबस कर दो।

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब .....
आपके पास शब्द हैं , भाव हैं ....
बस यूँ ही लिखते रहें .....

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बेहद दर्द झलक रहा है... सामायिक और कशिश भरी रचना ...बधाई... शुभकामना..

Vivek Jain said...

उफ़, इतना दर्द,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

रेखा said...

उद्देश्यपूर्ण और सार्थक पोस्ट

chandra said...

bahut acchi kavita hai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुति!

संजय भास्‍कर said...

प्रिय कुमार
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....

Aryan said...

@--Ryn->

Nabi Na The Magar Insaan Pe Jaan Chhirrakte The..

Suna Hai Agle Zamane Ke Log Achhe The..

Woh Hastiyaan Bhi Ajab Woh Bastiyaan Bhi Ajab..

Keh Aandhiyon Me Bhi Jin Ke Chiragh Jalte The..
.
best of luck dear....
so sweet..bindas likha...kya jivan kya jindgi...

Arvind kumar said...

aap sabhi ka bahut bahut shukriya......aap sabhi se bahut kuchh sikhna baki hai.....

Kailash Sharma said...

बहुत खूब..बहुत मार्मिक और भावपूर्ण...बहुत सशक्त प्रस्तुति..

Unknown said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण सशक्त प्रस्तुति

deepti sharma said...

bahut khub

Vandana Ramasingh said...

जीवन की क्षणभंगुरता को खूबसूरती से उकेरा है आपने

सागर said...

bhaavpur abhivaykti...

विभूति" said...

बहुत ही मार्मिक रचना....

सदा said...

बहुत ही अच्‍छा लिखते हैं आप ...इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के‍ लिये बधाई के साथ शुभकामनाएं ...।

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बेहद प्रभावी अभिव्यक्ति ...... आभार !

Dr Kiran Mishra said...

nice kavita me bhav hai

रविकर said...

सरक-सरक के निसरती, निसर निसोत निवात |
चर्चा-मंच पे आ जमी, पिछली बीती रात ||

http://charchamanch.blogspot.com/

संध्या शर्मा said...

हजारों काम हैं करने पर किसको करूं पहले ?
मुझे ऐ काश कोई मौत का दिन ही बता देता ।

बहुत सुंदर ....प्रभावित करती रचना ....
बहुत अच्‍छा लिखते हैं आप ...इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के‍ लिये बधाई के साथ साथ ढेर सारी शुभकामनाएं.....

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

वेदनापूर्ण अभिव्यक्ति

Ravi Rajbhar said...

Bahut khoob...
ek dam se dukhati rag par apne hath rakh diya.

Likhate rahiye..!

Abhar

कविता रावत said...

ये दर्द ना होता इस मासूम शहर में
ग़र काफ़िरों को वो अपना ईमां नहीं देता ।
..kash ye kafir samjh sakte..
bahut hi sundar nek bhawanapurn prastuti ke liye aabhar!

Rashmi Garg said...

jine ki tamanna hai to marne ka hunar seekho...
maut bhi lazmi hai bahut zindagi ke liye......

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द