Sunday 19 May 2013

क्या मज़ाक चल रहा है ?




क्या मज़ाक चल रहा है परिंदों के बीच,
आसमां को दौड़ का मैदान बना रखा है 

बड़ी हसरत थी उसे टूटकर बरसने की,
मगर हौँसले ने उसे बेकरार बना रखा है 

जो हँसता हुआ आया, उसे क़ातिल समझ बैठे,
याँ हर शख्स ने आहों से आस्तान सजा रखा है

मैँ घर गया तो माँ का आंचल न सूखेगा,
उन आँखों में बरसों से सब्र पला रखा है

वो इक रोज़ कुछ सोचकर फिर बदलेगा अपना फ़ैसला,
इसी उम्मीद ने इक लाश को इंसान बना रखा है

शहर में फिर कहीं इंसानियत नंगी हुई होगी,
शर्मिन्दगी ने कल से मुंह छुपा रखा है

-  अरविन्द 

8 comments:

Amrita Tanmay said...

उम्दा..

Prakash Jain said...

Behtareen..bahut khoob

Shalini kaushik said...

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..मन को छू गयी .आभार . मेरी किस्मत ही ऐसी है .
साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3

Anju (Anu) Chaudhary said...

waah bahut khub ......
apki is lekhni se meri bhi ek kavita ban gayi hai


kuch dino mein main use apne blog par dalungi

Arvind kumar said...

ji bahut bahut shukriya

dil se... said...

Achha likha..

shephali said...

बहुत उम्दा

संजय भास्‍कर said...

सुंदर और सार्थक

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द