इस क़दर चाहा उसे दुश्मन ज़माना हो गया ,
जो सितारा था बुलंद,गर्दिशों में खो गया
किसको पूछें राह अब,किससे कहें हाल-ए-दिल,
जो शहर रोशन कभी था,आज वीरां हो गया
जिस ख़ुदा के सामने कसमें उठायीं प्यार की,
वो भी हिम्मत हार कर गुमशुदा सा हो गया
ऐ जहां के दुश्मनों,कोई ज़ख्म ताज़ा दो हमें,
उनकी खातिर ज़ख्म सहना अब पुराना हो गया
है असर क्या इश्क का,इतिहास लेकर देखिये,
ज़ुल्म करने वालों को भी नाम हासिल हो गया
- कुमार
8 comments:
किसको पूछें राह अब,किससे कहें हाल-ए-दिल,
जो शहर रोशन कभी था,आज वीरां हो गया
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति।
बेहतरीन पंक्तियाँ ......
wahhh...bahut behtreen...
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_26.html
ऐ जहां के दुश्मनों,कोई ज़ख्म ताज़ा दो हमें,
उनकी खातिर ज़ख्म सहना अब पुराना हो गया
वाह बहुत खूब
ज़ख्म हैं तो जिंदगी है ,जिंदगी है तो ज़ख्म होंगे ही
ऐ जहां के दुश्मनों,कोई ज़ख्म ताज़ा दो हमें,
उनकी खातिर ज़ख्म सहना अब पुराना हो गया
बहुत ही खूब, लाजवाब
बहुत ही अच्छा लेखन है आपका
सुन्दर भावाभियक्ति !
किसको पूछें राह अब,किससे कहें हाल-ए-दिल,
जो शहर रोशन कभी था,आज वीरां हो गया
जिस ख़ुदा के सामने कसमें उठायीं प्यार की,
वो भी हिम्मत हार कर गुमशुदा सा हो गया
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .ह्रदय को छू लेने वाली रचना.
bahut sunder rachana
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