Thursday, 30 August 2012

बदलता इंसान ..



इंसानियत  की  दहलीज़  को  पार  कर,
हैवानियत   के  संसार  में  खो  गया  है  वो 
मार  कर  अपने   ज़मीर   को ,
खुद  का  ही  क़ातिल  हो  गया  है  वो
अपने  पराये  का जो  भेद  जानता भी  न  था ,
आज  अहम् ( मैं )  के सागर  में  डूब  गया है  वो 
चंद  सिक्कों   की  खातिर  दगा  करने  लगा,  
प्रेम   की  भाषा  का  मोल  भूल  गया  है  वो 
खुद  में  ही  जब  इंसानियत  का  वजूद  मिट  गया, 
तो  दूसरों  से  उम्मीद  क्यों  करने  लगा  है  वो ?
कभी  खुदा  का  बन्दा  रहा  होगा ,
पर  आज  हैवान  सा  लगने  लगा  है  वो ...

Mrs. Nirmala kumar 





14 comments:

संजय भास्‍कर said...

गहरे जज्बात रख दिये हैं खोल के...गहन भाव दर्शाती बेहतरीन प्रस्तुति

मेरा मन पंछी सा said...

अहम् और पैसो के आगे इन्सान
ईमान और इंसानियत भूल जाता है..
गहन भाव लिए रचना...
:-)

Arvind kumar said...

Ji bahut bahut shukriya

सदा said...

बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।

Unknown said...

बढिया प्रस्‍तुति।

Mrs.Nirmal kumar said...

सही कहा आपने.....बहुत बहुत शुक्रिया

Mrs.Nirmal kumar said...

ह्रदय से आभार आपका .....

Mrs.Nirmal kumar said...
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Mrs.Nirmal kumar said...
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Mrs.Nirmal kumar said...

ह्रदय से आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Mrs.Nirmal kumar said...

ह्रदय से आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Anju (Anu) Chaudhary said...

लिखना यूँ ही कायम रहे ...

दिगम्बर नासवा said...

इस बदलाव को महसूस करने की जरूरत है आज ....

Rashmi Garg said...

मर्मस्पर्शी

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द