इंसानियत की दहलीज़ को पार कर,
हैवानियत   के  संसार  में  खो  गया  है  वो 
मार  कर  अपने   ज़मीर   को ,
खुद  का  ही  क़ातिल  हो  गया  है  वो
अपने  पराये  का जो  भेद  जानता भी  न  था ,
आज  अहम् ( मैं )  के सागर  में  डूब  गया है  वो 
चंद  सिक्कों   की  खातिर  दगा  करने  लगा,  
प्रेम   की  भाषा  का  मोल  भूल  गया  है  वो 
खुद  में  ही  जब  इंसानियत  का  वजूद  मिट  गया, 
तो  दूसरों  से  उम्मीद  क्यों  करने  लगा  है  वो ?
कभी  खुदा  का  बन्दा  रहा  होगा ,
पर  आज  हैवान  सा  लगने  लगा  है  वो ...
Mrs. Nirmala kumar 

14 comments:
गहरे जज्बात रख दिये हैं खोल के...गहन भाव दर्शाती बेहतरीन प्रस्तुति
अहम् और पैसो के आगे इन्सान
ईमान और इंसानियत भूल जाता है..
गहन भाव लिए रचना...
:-)
Ji bahut bahut shukriya
बहुत ही बढिया प्रस्तुति।
बढिया प्रस्तुति।
सही कहा आपने.....बहुत बहुत शुक्रिया
ह्रदय से आभार आपका .....
ह्रदय से आपका बहुत बहुत शुक्रिया
ह्रदय से आपका बहुत बहुत शुक्रिया
लिखना यूँ ही कायम रहे ...
इस बदलाव को महसूस करने की जरूरत है आज ....
मर्मस्पर्शी
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