Wednesday, 1 August 2012
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
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क्या मज़ाक चल रहा है परिंदों के बीच, आसमां को दौड़ का मैदान बना रखा है बड़ी हसरत थी उसे टूटकर बरसने की, मगर हौँसले ने उसे ...
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आजकल कोई हँसकर नहीं मिलता, गले मिलकर भी कोई दिल नहीं मिलता किस तरह समेटा है तूफां ने समन्दर को, कश्ती को डूबता मुसाफि...
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कुछ पल तो हँसने दे मुझे,ना उदास कर तू घर जाने की बातें,ना बार बार कर दो लम्हे बीते होंगें,साथ बैठे हुए तू सदियो...
9 comments:
दंगे फ़साद
हर सुबह ऐसी
बीरानी रात,,,
वाह,,,,बहुत बेहतरीन हाइकू,,,,,कुमार जी
रक्षाबँधन की हार्दिक बधाई,शुभकामनाए,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
वाह|||||
सभी उत्कृष्ट और बेहतरीन हाइकु :-)
बहुत सुन्दर....
थोड़े से शब्दों में बहुत सारी बात....
अनु
बहुत सुंदर हाइकु
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ...
सुंदर हाइकु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
श्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सब पराये
तुमसा नही कोई
मेरा अपना ...सुन्दर हाइकु .
गागर में सागर भरना सा लगा .......
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