गया इक रोज मुझे छोड़,मेरा चाहने वाला
तकती आँखों की फिर आज तमन्ना है वही,
हँसे फिर आज मुझ पर,मेरा चाहने वाला
वो नाज़िर था मेरा,संगदिल नहीं यारों,
खून ए जिगर को लोटेगा,मेरा चाहने वाला
काश जाते हुये वो हुनर भी दे जाता मुझको,
जैसे भूला है मुझको, मेरा चाहने वाला
हम तो पत्थर हैं,रोयेंगे तो क्या रोयेंगे, ?
बस कोई पत्थर ना फिर पाये,मेरा चाहने वाला
-kumar
25 comments:
very nice.
काश जाते हुये वो हुनर भी दे जाता मुझको,
जैसे भूला है मुझको, मेरा चाहने वाला
....बहुत खूब! सुन्दर प्रस्तुति..
bahut khoob..........
touchy...
काश जाते हुये वो हुनर भी दे जाता मुझको,
जैसे भूला है मुझको, मेरा चाहने वाला
लाज़वाब...
बहूत सुंदर जजबात , सुंदर रचना...
बहुत बढ़िया!
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
सुंदर अभिव्यक्ति , सुंदर रचना...मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत उम्दा!!
हम तो पत्थर हैं,रोयेंगे तो क्या रोयेंगे, ?
बस कोई पत्थर ना फिर पाये,मेरा चाहने वाला
ज़बरदस्त लिखा है बॉस।
सादर
अच्छा लिखा है ....बेहतरीन अभिव्यक्ति
म तो पत्थर हैं,रोयेंगे तो क्या रोयेंगे, ?
बस कोई पत्थर ना फिर पाये,मेरा चाहने वाला
chahne waalon ko aisaa chaahne waalaa mil jaaye bas....
bahut khubsoorat post
हम तो पत्थर हैं, रोयेंगे तो क्या रोयेंगे, ?
बस कोई पत्थर ना फिर पाये,मेरा चाहने वाला
आपकी रचनात्मकता से बाकिफ होना और आपकी शैली को पढना एक रोचक और सिखाने वाला अनुभव रहा .....आपको अनेक शुभकामनाएं सतत लेखन के लिए
हम तो पत्थर हैं,रोयेंगे तो क्या रोयेंगे, ?
बस कोई पत्थर ना फिर पाये,मेरा चाहने वाला
बहुत खूब ।
बहुत खूब
Sunder ghazal. Sabhi sher ek se badhkar ek the.
बेहतरीन अभिव्यक्ति
खूबसूरत गज़ल
बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।
sundar bhavon se saji sundar rachna ....
मेरे भी ब्लॉग में पधारें और मेरी रचना देखें |
मेरी कविता:वो एक ख्वाब था
आपका यह पोस्ट अच्छा लगा । मरे नए पोस्ट " डॉ. धर्मवीर भारती" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
काश जाते हुये वो हुनर भी दे जाता मुझको,
जैसे भूला है मुझको, मेरा चाहने वाला
वाह...
बहुत बहुत खूबसूरत...........
अनु
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