Thursday, 15 December 2011

बदलाव...




आजकल  कोई  हँसकर नहीं  मिलता,
गले  मिलकर  भी  कोई  दिल  नहीं  मिलता 

किस  तरह  समेटा  है  तूफां ने  समन्दर  को,
कश्ती  को  डूबता  मुसाफिर  नहीं  मिलता 

वो  नादाँ है,इंसां  पे  ऐतवार  करता  है,
वक़्त  पड़  जाये  तो,ख़ुदा  भी  नहीं  मिलता

एक  खलिश  उठती  है,तेरी हर बात से,दिल में,
मेरी चाहतों को दर्द का आलम नहीं मिलता 

आसमां  को  छू  रहे  हैं,पत्थरों  के  मकां,
बच्चों  को  अब  खेलने, मैदां  नहीं  मिलता

माँ,तू सच कहती थी,नादान को प्यार मत करना,
दिल टूटेगा तो फिर कोई नादान नहीं मिलता

-kumar

19 comments:

Nirantar said...

bahut achhe bhaav

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आसमां को छू रहे हैं,पत्थरों के मकां,
बच्चों को अब खेलने, मैदां नहीं मिलता

बहुत बढ़िया ...गहरी बात कही ....

रविकर said...

प्रभावी प्रस्तुति ||
बधाई भाई ||

संजय भास्‍कर said...

सुंदर शब्दों के साथ सुंदर अभिव्यक्ति...

Yashwant R. B. Mathur said...

एक खलिश उठती है,तेरी हर बात से,दिल में,
मेरी चाहतों को दर्द का आलम नहीं मिलता

बहुत ही बढ़िया ।

सदा said...

आसमां को छू रहे हैं,पत्थरों के मकां,
बच्चों को अब खेलने, मैदां नहीं मिलता
बहुत खूब लिखा है आपने ।

Amrita Tanmay said...

बेहद खुबसूरत ..

Rashmi Garg said...

sunder....

कुमार संतोष said...

वो नादाँ है,इंसां पे ऐतवार करता है,
वक़्त पड़ जाये तो,ख़ुदा भी नहीं मिलता

सुन्दर, बहुत बढियां..
आभार !

संध्या शर्मा said...

आसमां को छू रहे हैं,पत्थरों के मकां,
बच्चों को अब खेलने, मैदां नहीं मिलता

सटीक अभिव्यक्ति...आभार

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर बेहतरीन प्रस्तुति,..बधाई

मेरी नई पोस्ट केलिए काव्यान्जलि मे click करे

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर रचना....
सादर बधाई...

Anju (Anu) Chaudhary said...

bahut khub

रेखा said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति ..

***Punam*** said...

"वो नादाँ है,इंसां पे ऐतवार करता है,
वक़्त पड़ जाये तो,ख़ुदा भी नहीं मिलता"


शब्दों की मधुर संयोजन......सुन्दर रचना.....

रजनीश तिवारी said...

आजकल कोई हँसकर नहीं मिलता,
गले मिलकर भी कोई दिल नहीं मिलता
सभी शेर बहुत अच्छे हैं, बधाई

Kailash Sharma said...

आजकल कोई हँसकर नहीं मिलता,
गले मिलकर भी कोई दिल नहीं मिलता

....बहुत खूब! सभी शेर बहुत उम्दा...

दिगम्बर नासवा said...

आसमां को छू रहे हैं,पत्थरों के मकां,
बच्चों को अब खेलने, मैदां नहीं मिलता ..

बहुत खूब ... सच कडुवा सच लिखा है इस शेर में अपने कुमार जी ...

मेरा मन पंछी सा said...

बहूत गहरे जज्बातो से लिखी बेहतरीन रचना है....

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द