Wednesday, 23 November 2011

कुछ और....



सोचा था कुछ और मंजिल कुछ और हो गई,
जिस महफ़िल  में हम गये,वही रुस्बा हो गई

राह ए मोहब्बत्त में,हमने निभाई हर सदा,
उनके लिए हर सदा,बस इक अदा हो गई

उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई

उनके हर इक सितम को चुपचाप हमने सह लिया,
लेकिन हम पर सितम करना उनकी आदत हो गई

अपने लहू के रंग से लिखे थे कुछ यादों के गीत,
उन्होंने कर दी दुआ,और बरसात हो गई

-kumar

25 comments:

Sunil Kumar said...

मुहब्बत में ऐसा ही होता है :) अच्छे शेर मुबारक हो .....

संजय भास्‍कर said...

उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई

वाह...एक से बढ़कर एक हर शेर बहुत खुबसूरत ... ...क्या प्रशंसा करूँ..

संजय भास्‍कर said...

हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।

सदा said...

वाह ...बहुत खूब ..बेहतरीन प्रस्‍तुति।

Yashwant R. B. Mathur said...

उनके हर इक सितम को चुपचाप हमने सह लिया,
लेकिन हम पर सितम करना उनकी आदत हो गई

बहुत खूब दोस्त!

Anju (Anu) Chaudhary said...

bahut khub.......

Kailash Sharma said...

उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई

....बहुत खूब! बेहतरीन अभिव्यक्ति..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत उत्तम सृजन!

रेखा said...

अपने लहू के रंग से लिखे थे कुछ यादों के गीत,
उन्होंने कर दी दुआ,और बरसात हो गई

वाह ...बहुत खूब

Dr.NISHA MAHARANA said...

उनके हर इक सितम को चुपचाप हमने सह लिया,
लेकिन हम पर सितम करना उनकी आदत हो गई..बहुत खूब.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर मन के भाव...... अच्छी पंक्तियाँ लिखी हैं .....

Vandana Ramasingh said...

उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई

अच्छी पंक्तियाँ

संध्या शर्मा said...

बहुत खुबसूरत...सुंदर भाव...

Rashmi Garg said...

good 1...

अनुपमा पाठक said...

बहुत खूब!

दिगम्बर नासवा said...

उनके हर इक सितम को चुपचाप हमने सह लिया,
लेकिन हम पर सितम करना उनकी आदत हो गई ...

ये तो हसीनों की आदत है .. सितम करना ... बहुत लाजवाब शेर है ...

shephali said...

एक शाम मैंने आज भी तेरे नाम रखी थी
आज एहसास हुआ वो कब की गुज़र गयी

kshama said...

उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई

उनके हर इक सितम को चुपचाप हमने सह लिया,
लेकिन हम पर सितम करना उनकी आदत हो गई

अपने लहू के रंग से लिखे थे कुछ यादों के गीत,
उन्होंने कर दी दुआ,और बरसात हो गई
Kya baat hai! Kya kamal kee panktiyan hain!

रजनीश तिवारी said...

अपने लहू के रंग से लिखे थे कुछ यादों के गीत,
उन्होंने कर दी दुआ,और बरसात हो गई
dard bharee gazal

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद। ।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

या तो मिट जाइये या मिटा दीजिये
कीजिये जब भी सौदा खरा कीजिये............

मेरा मन पंछी सा said...

गहरे अहसास लिये सुंदर रचना है...

मन्टू कुमार said...

Umda shayri...

dr.mahendrag said...


उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई
अक्सर मुहब्बत में ऐसा ही होता है,पर कई बार अपना साया भी साथ छोड़ देता है

विभूति" said...

भावमय करते शब्‍दों का संगम.....

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द