ये घर बीरान सा लगता है
खिलौनों की आहटों को नजर लगाई किसने
वो सह लेती है हर बात खामोशी से
अब मै बङा हो गया हूँ माँ के लिएमेरे घर देर से आने पर भी नाराज नहीँ होती
अब याद रहता है उसे अपने खाने का वक्त
मेरी तनख्वा को कभी पूछा नहीँ उसने
अब मैँ अब बङा हो गया हूँ माँ के लिए
आज सबकुछ होकर बस ख्वाब नहीँ आँखों मेँ
वो वक्त,वो खिलौने,वो बचपना कैसे दूँ बापस
अब मैँ अब बङा हो गया हुँ माँ के लिए......
kumar
9 comments:
i like it so sweet.....realy.
nice....
shukriya.......
bahut sundar kumar.......maa ki tulna kisi se nahi ki ja sakti
माँ आखिर माँ होती है ......सुंदर भावनाएं अभिव्यक्त की हैं आपने आपका आभार
मां पर लिखा गया ...कहा गया हमेशा बेहतरीन होता है ...।
माँ के प्रति सुंदर भाव-सुमन.ममतामयी रचना.......!
bhaskar ji aapka bahut bahut dhanyabaad.....
माँ के बारे में कुछ भी कहा जाये कम ही होगा
मैंने भी कभी कोशिश की थी
http://silenotion.blogspot.com/2010/05/maa-wat-is-mothers-love-mothers-love-is.html
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