Monday, 13 June 2011

माँ ....

                                     
ये घर बीरान सा लगता है
खिलौनों की आहटों को नजर लगाई किसने
वो सह लेती है हर बात खामोशी से
अब मै बङा हो गया हूँ माँ के लिए


मेरे घर देर से आने पर भी नाराज नहीँ होती
अब याद रहता है उसे अपने खाने का वक्त
मेरी तनख्वा को कभी पूछा नहीँ उसने
अब मैँ अब बङा हो गया हूँ माँ के लिए


कितना दूर आ गया था सच करने ख्वाबों को
आज सबकुछ होकर बस ख्वाब नहीँ आँखों मेँ
वो वक्त,वो खिलौने,वो बचपना कैसे दूँ बापस
अब मैँ अब बङा हो गया हुँ माँ के लिए......

kumar

9 comments:

Aryan said...

i like it so sweet.....realy.

tamanna said...

nice....

Arvind kumar said...

shukriya.......

संजय भास्‍कर said...

bahut sundar kumar.......maa ki tulna kisi se nahi ki ja sakti

संजय भास्‍कर said...

माँ आखिर माँ होती है ......सुंदर भावनाएं अभिव्यक्त की हैं आपने आपका आभार

संजय भास्‍कर said...

मां पर लिखा गया ...कहा गया हमेशा बेहतरीन होता है ...।

संजय भास्‍कर said...

माँ के प्रति सुंदर भाव-सुमन.ममतामयी रचना.......!

Arvind kumar said...

bhaskar ji aapka bahut bahut dhanyabaad.....

shephali said...

माँ के बारे में कुछ भी कहा जाये कम ही होगा
मैंने भी कभी कोशिश की थी

http://silenotion.blogspot.com/2010/05/maa-wat-is-mothers-love-mothers-love-is.html

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द