खुद से पूछता हूँ हर रोज कि क्या स्वार्थी हूँ मैं कोई आबाज भी नहीं आती एक उलझन सी बनी रहती है कितना खलता है मुझे समर्थ होना ढेरों उम्मीद लगा लेते हैं लोग क्यूँ न कर सका मैं अपनी जिन्दगी का समझौता माँ की छोटी सी खुशी के लिए शायद डरता हूँ भविष्य से कितना स्वार्थी हूँ मैं......
6 comments:
बेहतरीन प्रस्तुति
कल 18/07/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''
बेहतरीन................
अनु
सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई
बहुत बढ़िया
सादर
बेहतरीन प्रस्तुति:-)
माँ की छोटी सी खुशी के लिए
शायद डरता हूँ भविष्य से
कितना स्वार्थी हूँ मैं.....
बहुत सुन्दर चिंतन से भरी रचना ..
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