कभी कभी सोचता हूँ की सूचीबद्ध करूँ अपने सपनों को समर्थ जब होऊंगा,तो इन्हें पूरा करूँगा फिर सोचता हूँ तब कोई सपना ही कहाँ रहेगा बस विलासिता होगी हर तरफ न कोई तपिश होगी न कोई कशिश फिर जिंदगी आज की तरह रंगीन कहाँ होगी न होगा मज़ा जीने का एक उम्मीद को थामे हुए कितने सच्चे हैं ये अधूरे सपने......
1 comment:
बेहद खूबसूरत ख़्याल.....लेखन के क्षेत्र में आपका चमकता भविष्य दिख रहा है.....ढेरों शुभकामनाएँ
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