Saturday, 28 May 2011
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
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कुछ पल तो हँसने दे मुझे,ना उदास कर तू घर जाने की बातें,ना बार बार कर दो लम्हे बीते होंगें,साथ बैठे हुए तू सदियो...
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तेरे बारे में सबको बताऊँगा कैसे ? ज़ख्म दिल में बसे हैं,दिखाऊँगा कैसे ? तू बेवफा तो नहीं था जो वादे से मुकर गया, मगर ये सच ज़...
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सच को शिकायत है , कोई इधर नही आता , मंहगाई इतनी है , सस्ता ज़हर नही आता मैने जब भी कुछ मांगा , ख़ुदा ने झूठ...
1 comment:
बेहद खूबसूरत ख़्याल.....लेखन के क्षेत्र में आपका चमकता भविष्य दिख रहा है.....ढेरों शुभकामनाएँ
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