क्या करूँ कि तेरी याद ना आये मुझे कभी,
कितना हँसू कि जख्म ये ना रुलाये मुझे कभी ?कितनी आहटों में हर पल दिल मशगूल रहता है,
अब कोई ख़ामोशी ना सताए मुझे कभी
बुत बन गया खुदा,कितना खुशनसीब है ?
तू किसी जान का एहसास ना कराये मुझे कभी
वो मुझे अब भी चाहता है,मेरा ऐतबार करता है,
ये पहचानी सी बातें कोई ना सुनाये मुझे कभी
तेरा ज़िक्र ए बेवफाई किसी से करूँगा कैसे,
डर है,कोई बेवफा ना बताये मुझे कभी
-kumar
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