सच को शिकायत है, कोई इधर नही आता,
मंहगाई इतनी है,सस्ता ज़हर नही आता
मैने जब भी कुछ मांगा,ख़ुदा ने झूठ ही बोला,
उसके इलाक़े में,मेरा घर नही आता
मेरी ग़लती फ़क़त इतनी है,कि मैं इंसां हूँ,
मुझको सियासत करने का हुनर नही आता
ये बुतपरस्तोँ का शहर है, बच्चे भूखे मरें तो मरें,
करोड़ों उस ख़ुदा पर चढ़ते हैं, जो नज़र नही आता
वालिद के तंज आज तक दिल में हैं मगर,
माँ रोती बहुत होगी, बेटा घर नही आता
ये दुनियाँ बदल गयी है, या मेरी आँखों का तरजुमा, ?
जैसा बचपन में दिखता था, बैसा नज़र नही आता
- कुमार