Saturday, 8 December 2012
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
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क्या मज़ाक चल रहा है परिंदों के बीच, आसमां को दौड़ का मैदान बना रखा है बड़ी हसरत थी उसे टूटकर बरसने की, मगर हौँसले ने उसे ...
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आजकल कोई हँसकर नहीं मिलता, गले मिलकर भी कोई दिल नहीं मिलता किस तरह समेटा है तूफां ने समन्दर को, कश्ती को डूबता मुसाफि...
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कुछ पल तो हँसने दे मुझे,ना उदास कर तू घर जाने की बातें,ना बार बार कर दो लम्हे बीते होंगें,साथ बैठे हुए तू सदियो...
10 comments:
बहुत खूब
गहन भाव और विशेष अर्थ लिए
मर्मस्पर्शी क्षणिकाएं...
सभी हाइकु भावप्रबल हैं ...
शुभकामनायें ...
सुन्दर क्षणिकाएँ...
अनु
एक ज़िन्दगी में
रोजाना होतीं
हज़ारों मौतें...
.बहुत सुन्दर विचारणीय अभिव्यक्ति .बधाई
प्रयास सफल तो आज़ाद असफल तो अपराध [कानूनी ज्ञान ] और [कौशल ].शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता .पर देखें और अपने विचार प्रकट करें
गहन क्षणिकाएं
अर्थपूर्ण क्षणिकाएँ
ji maaf keejiyega ye haiku nahin hain
हर रोज
तनख्वा गिनता
नौकरीपेशा...
गहन भाव लिये सशक्त प्रस्तुति
अधूरी बात,
देती पूरा अर्थ...
गहन भाव भरी मर्मस्पर्शी क्षणिकाएं...शुभकामनायें
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