Monday, 17 December 2012

तलाश



हजारों लोग तो देखे मगर इन्सां नहीं देखा,
कहीं मासूमियत में लिपटा बच्चा नहीं देखा 

ये कौन लोग हैं तलवारें लिए हुये ?
मैने खून का प्यासा कोई मज़हब नहीं देखा

उसके गुलामों में,बदनाम थे बहुत,
हर पल यही कहना तुमसा नहीं देखा

कई बार खायी  है विश्वास की ठोकर,
जिसपे भरोसा था संग नहीं देखा 

कितने सवेरे हो गये जागते हुये ?
आँखों ने उसका कोई सपना नहीं देखा 

- kumar 


9 comments:

vandana gupta said...

आज के सच को कहती बेहतरीन गज़ल

Anonymous said...

वाह - बहुत सुंदर

Anupama Tripathi said...

gahan abhivyakti ....shubhkamnayen .

संध्या शर्मा said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति... शुभकामनायें

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब .... आज कल तो न जाने क्या क्या देखने को मिल रहा है ॥जो हम देखना भी नहीं चाहते

Kailash Sharma said...

हजारों लोग तो देखे मगर इन्सां नहीं देखा,
कहीं मासूमियत में लिपटा बच्चा नहीं देखा

...बहुत खूब! आज के यथार्थ का सटीक चित्रण..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह!!!!बहुत बेहतरीन गजल,,,सटीक चित्रंण,,

recent post: वजूद,

Vandana Ramasingh said...

ये कौन लोग हैं तलवारें लिए हुये ?
मैने खून का प्यासा कोई मज़हब नहीं देखा

यथार्थ का सटीक चित्रण

Anju (Anu) Chaudhary said...

दर्द ही दर्द

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द