Monday, 1 October 2012

क्या करता.... ???



तेरी बातों पे ऐतबार न करता,तो क्या करता ?
मरना था कई बार,जो इक बार मरता तो क्या मरता ?

कहकर ख़ुदा तुझको ख़ुदा से दुश्मनी ली,
ग़र यह नही करता,तो क्या करता ?

मिटाकर खुद को खुद से ही ढूँढे हैं निशाँ तेरे,
ग़र सज़दा नही करता,तो क्या करता ?

मैं मुज़रिम हूँ जमाने का सजा चाहता हूँ बस तुझसे,
ग़र उम्मीद ना करता,तो क्या करता ?

खफा है मुझसे अब तक तू कि मैं ज़ज्बाती हो गया,
ग़र यह बात ना करता,तो क्या करता....   ???

- Kumar 

6 comments:

संध्या शर्मा said...

कहकर ख़ुदा तुझको ख़ुदा से दुश्मनी ली,
ग़र यह नही करता,तो क्या करता ?
वाह... बहुत खूब...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मैं मुज़रिम हूँ जमाने का सजा चाहता हूँ बस तुझसे,
ग़र उम्मीद ना करता,तो क्या करता ?

Khoob Kaha...

Nidhi said...

बहुत खूब..

Anju (Anu) Chaudhary said...

खूबसूरत अहसास ...इस दिल के

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही बढ़िया रचना...
:-)

Rashmi Garg said...

खूबसूरत

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द