इंसानियत की दहलीज़ को पार कर,
हैवानियत के संसार में खो गया है वो
मार कर अपने ज़मीर को ,
खुद का ही क़ातिल हो गया है वो
अपने पराये का जो भेद जानता भी न था ,
आज अहम् ( मैं ) के सागर में डूब गया है वो
चंद सिक्कों की खातिर दगा करने लगा,
प्रेम की भाषा का मोल भूल गया है वो
खुद में ही जब इंसानियत का वजूद मिट गया,
तो दूसरों से उम्मीद क्यों करने लगा है वो ?
कभी खुदा का बन्दा रहा होगा ,
पर आज हैवान सा लगने लगा है वो ...
Mrs. Nirmala kumar