(१)
भूखे बच्चे को
थपकियों से बहलाता,
सूखा आँचल....
सूखा आँचल....
(२)
लड़ रहा हूँ
अपनों में रहकर
अपनों से...
(३)
बढ़ जाती है
हर रिश्ते की बोली
बुरे वक़्त में...
(४)
और पिलाओ मुझे
दिल खाली है
जाम नहीं...
(५)
ये वक़्त
क्या आज भी वही है
जो तब था...
(६)
मज़हबी लोग
करते बँटवारा
मासूम खुदा का...
(७)
अधखुली आँखें
तेरा खयाल
अब क्या करूँ...?
- kumar
15 comments:
सत्य कहती ..प्रबल रचनायें..!!
बहूत हि बेहतरीन प्रस्तुती...
बहुत बढ़िया....
सभी एक से बढ़ कर एक...
तीसरी मुझे सबसे अधिक भायी...
अनु
बहुत खूब ... सभी कश्निकाएं लाजवाब ... दूर की बात कहती हुयी ...
क्या यह गागर में सागर को चरितार्थ करती नज्में हाइकु शैली की हैं?
बहुत बढ़िया हाइकु।
न०- ६ की रचना पर,,
लोग मजहवी है नही,खेल कराए नेता.
मझहब की दीवार बना, वोट हर लेता,,,,,
फालोवर बन गया हूँ आप भी बने तो खुशी होगी,,,,,,
पोस्ट पर आने के लिए आभार,,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
पूरी बात कहती अधूरी बातें...
बढ़ जाती है
हर रिश्ते की बोली
बुरे वक़्त में...
खूब कहा ....
सीमित शब्दों में कही, बहुत जरूरी बात।
लोग यहाँ भगवान को, पहुँचाते आघात।।
शब्द दो लिखता है
एक किताब की
बात कह देता है ।
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर कर ... लाजवाब प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया कम शब्दों में प्रभावपूर्ण हाइकु प्रस्तुति ..
कल 18/07/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''
बहुत खूब
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