Saturday, 14 July 2012

अधूरी बातें...




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भूखे बच्चे को
थपकियों से बहलाता,
सूखा  आँचल....

()
लड़ रहा हूँ
अपनों में रहकर 
अपनों से...

()
बढ़ जाती है
हर रिश्ते की बोली
बुरे वक़्त में...

()
और पिलाओ मुझे
दिल खाली है
जाम नहीं...

()
ये वक़्त
क्या आज भी वही है
जो तब था...

()
मज़हबी लोग
करते बँटवारा
मासूम खुदा का...

()
अधखुली आँखें
तेरा खयाल
अब क्या करूँ...?


- kumar 

15 comments:

Anupama Tripathi said...

सत्य कहती ..प्रबल रचनायें..!!

मेरा मन पंछी सा said...

बहूत हि बेहतरीन प्रस्तुती...

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया....
सभी एक से बढ़ कर एक...
तीसरी मुझे सबसे अधिक भायी...

अनु

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... सभी कश्निकाएं लाजवाब ... दूर की बात कहती हुयी ...

devendra gautam said...

क्या यह गागर में सागर को चरितार्थ करती नज्में हाइकु शैली की हैं?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया हाइकु।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

न०- ६ की रचना पर,,

लोग मजहवी है नही,खेल कराए नेता.
मझहब की दीवार बना, वोट हर लेता,,,,,

फालोवर बन गया हूँ आप भी बने तो खुशी होगी,,,,,,
पोस्ट पर आने के लिए आभार,,,,,,

RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

संध्या शर्मा said...

पूरी बात कहती अधूरी बातें...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बढ़ जाती है
हर रिश्ते की बोली
बुरे वक़्त में...

खूब कहा ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सीमित शब्दों में कही, बहुत जरूरी बात।
लोग यहाँ भगवान को, पहुँचाते आघात।।

सुशील कुमार जोशी said...

शब्द दो लिखता है
एक किताब की
बात कह देता है ।

सदा said...

सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर कर ... लाजवाब प्रस्‍तुति।

कविता रावत said...

बहुत बढ़िया कम शब्दों में प्रभावपूर्ण हाइकु प्रस्तुति ..

सदा said...

कल 18/07/2012 को आपके ब्‍लॉग की प्रथम पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत खूब

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द