ज़ख्म दिल में बसे हैं,दिखाऊँगा कैसे ?
तू बेवफा तो नहीं था जो वादे से मुकर गया,
मगर ये सच ज़माने को सुनाउँगा कैसे ?
तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो जज़्बात अब फिर से सजाऊँगा कैसे ?
कह पाता, तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज उसे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
- कुमार
40 comments:
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
ना कहें पाने कि कसक .....बहुत खूब
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी वर्णन...
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
वाह क्या बात है दोस्त मज़ा आ गया आप दर्द को बहुत खूबसूरती से बयान किया है |
सुन्दर रचना |
तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?
वाह!
बहुत अच्छा लिखते हैं आप।
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
बहुत खूब
बहुत सुन्दर कविता और ख़ूबसूरत एहसास
तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो ज़ज्बात अब फिर से सजाऊँगा कैसे ?
kaun janta hai wo phir se nihi bikhrenge
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
बहुत खूब ...।
उफ़ …………क्या गज़ब की गज़ल लिखी है सीधा दिल पर वार करती है।
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई कुमार जी
फ़ोर्ब्स की सूची :कृपया सही करें आकलन
बहुत सुन्दर कविता और ख़ूबसूरत एहसास
तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?
kya kahu bas dil tham ke baithe hain.
Bahut khoob.
Badhai ho bandhu.
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
bahut hi sundar ...
अरे वाह।
बहुत सुन्दर रचना है यह तो।
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?कहाँ से लातें हैं कुमार अन्ना साहब ये अलफ़ाज़ ,ये अशआर .दिल आपका पनडुब्बी सा इश्क में इत्ती गहरी डुबकी ?क्या बात है अन्ना कुमार साहब .मुबारक अशआर आ[पके ,मुबारक नसीब हमारे ...
ram ram bhai
शुक्रवार, २६ अगस्त २०११
राहुल ने फिर एक सच बोला .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
दर्द इतना प्यारा न होता तो दर्द कोई न अपनाता ...... बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ....
बहुत खूब ..लाजवाब गज़ल है ...
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
बढ़िया बहुत बढ़िया
कुमार साहब
बहुत प्यारे जज़्बात हैं
तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो जज़्बात अब फिर से सजाऊंगा कैसे
विशेष मनःस्थिति के ख़ास भावों की सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत ख़ूब !
तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
काश ..कह ही देते ... सुन्दर अभिव्यक्ति
kya baat hai :)
last ki do lines to bhot jyada khoobsurat''''likhte rhe......bas u hi..............
ख़ूबसूरत एहसास के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
ख़ूबसूरत गज़ल..
अरे कमाल का लिखा है आज तो……………मेरे पास तो शब्द कम पड गये है तारीफ़ के लिए
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
"कभी जाओ उसके दर तक लडखडाये कदम लिए,
वो ख़ुद आकर पास दामन थाम लेंगे. "
अशआर आपके जब भी पढो नए लगतें हैं सद्यस्नाता नायिका से ...बधाई ...अन्ना कुमार साहब !
सोमवार, २९ अगस्त २०११
क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/
सुन्दर अंदाज में सुन्दर गज़ल
Wakai, kafi kashish haiWakai, kafi kashish hai
ईसे ही प्यार कहते है !
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
बहुत बारीक-सी कहन...मन को छूने वाली...
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
अरे वाह. क्या खूब कहा है बहुत ही सुंदर शेर...
bahut sundar rachnaa,aabhar
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
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ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
कुमार जी नमस्कार, सुन्दर पंक्तियां मुद्दतों बाद हँसते -----मेरे ब्लाग पर भी आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत अच्छा लिखा है..कुमार.पर,हँसते हुए को रुलाना अच्छी बात नहीं है
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
वाह!! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
सादर बधाई...
मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
वाह क्या बात है ..बधाई
dil ke ehasaso ko sunder shabd diye hain.
कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
वाह!
सुंदर प्यारभरी रचना है...
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