Thursday, 25 August 2011

तेरे बारे में....



तेरे बारे में सबको बताऊँगा कैसे ?
ज़ख्म  दिल में बसे हैं,दिखाऊँगा कैसे ?

तू बेवफा तो नहीं था जो वादे से मुकर गया,
मगर ये सच ज़माने को सुनाउँगा कैसे ?

तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो जज़्बात अब फिर से सजाऊँगा कैसे ?

कह पाता, तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज उसे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

- कुमार 

40 comments:

Anju (Anu) Chaudhary said...

कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?


ना कहें पाने कि कसक .....बहुत खूब

Anupama Tripathi said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी वर्णन...

Minakshi Pant said...

कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

वाह क्या बात है दोस्त मज़ा आ गया आप दर्द को बहुत खूबसूरती से बयान किया है |
सुन्दर रचना |

Yashwant R. B. Mathur said...

तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?

वाह!
बहुत अच्छा लिखते हैं आप।

shephali said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

बहुत खूब
बहुत सुन्दर कविता और ख़ूबसूरत एहसास

रश्मि प्रभा... said...

तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो ज़ज्बात अब फिर से सजाऊँगा कैसे ?
kaun janta hai wo phir se nihi bikhrenge

सदा said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

बहुत खूब ...।

vandana gupta said...

उफ़ …………क्या गज़ब की गज़ल लिखी है सीधा दिल पर वार करती है।

Shalini kaushik said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई कुमार जी

फ़ोर्ब्स की सूची :कृपया सही करें आकलन

Unknown said...

बहुत सुन्दर कविता और ख़ूबसूरत एहसास

Ravi Rajbhar said...

तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?
kya kahu bas dil tham ke baithe hain.

Bahut khoob.
Badhai ho bandhu.

Suresh kumar said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?
bahut hi sundar ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अरे वाह।
बहुत सुन्दर रचना है यह तो।

virendra sharma said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?कहाँ से लातें हैं कुमार अन्ना साहब ये अलफ़ाज़ ,ये अशआर .दिल आपका पनडुब्बी सा इश्क में इत्ती गहरी डुबकी ?क्या बात है अन्ना कुमार साहब .मुबारक अशआर आ[पके ,मुबारक नसीब हमारे ...

virendra sharma said...

ram ram bhai

शुक्रवार, २६ अगस्त २०११
राहुल ने फिर एक सच बोला .
http://veerubhai1947.blogspot.com/

निवेदिता श्रीवास्तव said...

दर्द इतना प्यारा न होता तो दर्द कोई न अपनाता ...... बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !

दिगम्बर नासवा said...

तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ....

बहुत खूब ..लाजवाब गज़ल है ...

Vandana Ramasingh said...

कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

बढ़िया बहुत बढ़िया

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

कुमार साहब

बहुत प्यारे जज़्बात हैं
तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो जज़्बात अब फिर से सजाऊंगा कैसे


विशेष मनःस्थिति के ख़ास भावों की सुंदर अभिव्यक्ति

बहुत ख़ूब !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?


कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

काश ..कह ही देते ... सुन्दर अभिव्यक्ति

Parul kanani said...

kya baat hai :)

manjusha.deshpande said...

last ki do lines to bhot jyada khoobsurat''''likhte rhe......bas u hi..............

Urmi said...

ख़ूबसूरत एहसास के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Kailash Sharma said...

तू बेवफा तो नहीं था जो बादे से मुकर गया,
मगर ये सच जमाने को सुनाउँगा कैसे ?

बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..

संजय भास्‍कर said...

ख़ूबसूरत गज़ल..
अरे कमाल का लिखा है आज तो……………मेरे पास तो शब्द कम पड गये है तारीफ़ के लिए

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

"कभी जाओ उसके दर तक लडखडाये कदम लिए,
वो ख़ुद आकर पास दामन थाम लेंगे. "

virendra sharma said...

अशआर आपके जब भी पढो नए लगतें हैं सद्यस्नाता नायिका से ...बधाई ...अन्ना कुमार साहब !
सोमवार, २९ अगस्त २०११
क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/

Amrita Tanmay said...

सुन्दर अंदाज में सुन्दर गज़ल

Dev said...

Wakai, kafi kashish haiWakai, kafi kashish hai

G.N.SHAW said...

ईसे ही प्यार कहते है !

Dr (Miss) Sharad Singh said...

कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

बहुत बारीक-सी कहन...मन को छूने वाली...

Dr Varsha Singh said...

कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

अरे वाह. क्या खूब कहा है बहुत ही सुंदर शेर...

S.N SHUKLA said...

bahut sundar rachnaa,aabhar
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं

**************

ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल

Suman Dubey said...

कुमार जी नमस्कार, सुन्दर पंक्तियां मुद्दतों बाद हँसते -----मेरे ब्लाग पर भी आपका हार्दिक स्वागत है।

Nidhi said...

बहुत अच्छा लिखा है..कुमार.पर,हँसते हुए को रुलाना अच्छी बात नहीं है

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

वाह!! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
सादर बधाई...

Mamta Bajpai said...

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज तुझे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

वाह क्या बात है ..बधाई

अनामिका की सदायें ...... said...

dil ke ehasaso ko sunder shabd diye hain.

अनुपमा पाठक said...

कह पाता तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?
वाह!

मेरा मन पंछी सा said...

सुंदर प्यारभरी रचना है...

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द