एक अरसा हो गया माँ,
तेरे हाथ के मोटे मोटे रोट खाये हुए
वो गीले उपलों को जलाने की जद्दोजहद में
तेरे आंचल का गीला होना
अब भी याद है मुझे...
एक अरसा हो गया माँ,
सिर पर तेरा हाथ महसूस किये हुए
जो चादर तूने दी थी,
मेरे घर से चलते समय
उसकी तहें अब तक लिपटी पङी हैँ.....
एक अरसा हो गया माँ,
मुझे रोये हुए
अपने हाथों से मेरे आंसू पोंछते वक्त
ना रोने की इक कसम दी थी तूने,
वो अब तक सँभाल रखी है मैने.....
एक अरसा हो गया माँ,
खुदा को देखे हुए,
एक अरसे से मैं बस यूँ ही जी रहा हूँ माँ.....
kumar
43 comments:
Rula diya na..
Sach maa to aisi hi hoti hi bas maa jaisi.
Ek dam dil me baith gai ye prastuti.... just abhi me maa se bat kar ke phone rakh kar hi apke blogg ko open kiya tha.
Bahut-2 badhai swikaren.
Ek apil hi...
Mujhe lagta hi ROT ko ROTI kar dijiye..
tiping mistake ho gai hi...!
Abhar
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..आँखें नम कर गयी..बहुत सुन्दर
शुक्रिया सर...
ravi ji....shukriya....
बहुत भावपूर्ण,अत्यंत मार्मिक
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
अत्यंत हृदयस्पर्शी...आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
प्रिय बंधुवर अरविंद जी
नमस्ते !
बहुत भावुक रचना है आपकी , जो भावुक करने में समर्थ भी है ...
एक अरसा हो गया मां ,
तेरे हाथ के मोटे मोटे रोट खाये हुए
वो गीले उपलों को जलाने की जद्दोजहद में
तेरे आंचल का गीला होना
अब भी याद है मुझे...
इस कविता का अत्यधिक विस्तार संभव है ...
आने वाले , ज़िंदगी के तमाम अनुभव अभी बाक़ी हैं ...
और तब भी बहुत कुछ शेष रहेगा ...
यह विषय ही ऐसा है न !
# रवि राजभर जी आप निश्चित रूप से विशुद्ध शहरी होंगे :)
देहाती और ग्रामीण परिवेश से नहीं होंगे...
मोटे मोटे रोट पारिवारिक देशज शब्द है , मोटी ( thick ) रोटी के लिए ...
पुनः श्रेष्ठ रचना हेतु
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
touching poem
बहुत ही मार्मिक रचना
पढ़ कर मुझे अपने चंडीगढ़ और देल्ही के दिन याद आ गए
"बहुत अजीब थे दिन वो
जब तुझ बिन जीना सीखा था
माँ पहली बार मैंने
आंसूं पीना सीखा था"
ना रोने की इक कसम दी थी तूने,
वो अब तक संभाल कर रखी है मैने ..
मां के लिये जब भी कुछ पढ़ा है मन भावुक हो जाता है ...
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...बधाई ।
maa ..... kahte poori srishti vatsalyamayi ho jati hai
बेहतरीन भाव लिए रचना।
शब्द नहीं सूझ रहे... क्या लिखूं इस पर।
आपने तो रूला ही दिया।
एक बार फिर बेहतरीन।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना अरविन्द जी ......और माँ तो ऐसे भी दिल के इतनी करीब होती है की वहां नमी आने ही आने हैं .......
रजनी जी बहुत बहुत शुक्रिया...
जब भी हृदय के दर्पण में भावनायें झाँकती है तो टूटे फूटे शब्दों को कलम के धागे में पिरोकर उनका श्रृंगार करने की कोशिश करता हूँ......बहुत खुबसूरत लिखा है आपने अपने बारे में...एक अरसा हो गया माँ,
मुझे रोये हुए
अपने हाथों से मेरे आंसू पोंछते वक्त
ना रोने की इक कसम दी थी तूने,
वो अब तक सँभाल रखी है मैने.....
...आपकी कबिता ने तो एक पल को रुला ही दिया....माँ...होती ही ऐसी है...उसके जैसा तो दुनिया में कोई नही है....आपकी कबिता लाजबाब है.....शयद पहली बार आई हु आपके ब्लॉग पे....अच्छा लगा.....
कूट कूट कर भावनाए भर दी है आपने इस रचना में . आपने माँ को समर्पित करते हुए रचना लिखी है जो रचना को और भावना प्रधान बना रही है. सुन्दर रचना.
बेहद भावुक कर जाती रचना .....
भावना प्रधान और सुन्दर रचना
सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...
बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
बेहद खूबसूरत....
पहली बार हूं आपके ब्लॉग पर...अच्छा लगा...
माँ एक ऐसा पावन शब्द जिसके बड़प्पन के बारे में जो भी कहा जाय कम है...धन्यवाद ओर बधाई
माँ को कोटि कोटि प्रणाम
पहले और आखिरी बंद ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया और सम्पूर्ण रचना में गांव की खुशबू है
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद!
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
Kumar ji,
Sadar Namskar...
Agar ham apke kimati samay me se kux mange to milega???
yadi han
to please call kijiyega..
my cell no. 09453887323
blogg setting ke liye kux apse puchna hi.
Thanx
very touching ....chu liya dil ko
कोई नहीं भूलता माँ कोई नहीं भूलता .... तेरे हाथों की खुशबू रोटी में हुआ करती थी , तेरे हाथ के कौर में ...
बहुत ही अपनी सी रचना
maa ki sayad isse adhik khubsurat abhivaykti ho nhi sakti... sab kuch samet diya aapne....
माँ मेरी भी ऐसी ही थी कुमार साहब ,आँखों से कंडों को दहकाती .मेरी तेरी उसकी सबकी माँ ऐसी ही होती है साझा अनुभूति की कविता .
यही सोच बनी रहे - शुभकामनाएं और आशीष
bahut sundar bhavon ko shabdon me piroya hai aapne kumar ji.badhai
हृदयस्पर्शी .....
kumar ji aapke blog ko ye blog achchha laga par liya hai ,aakar anugrahit karen
प्यारी सी कविता ...माँ से अच्छा तो कुछ भी नहीं होता ....
बहुत सुन्दर रचना, बहुत सुन्दर प्रस्तुति , एक सन्देश देती हुयी , आभार
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आयें
बेहद खूबसूरत कविता
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
kumar ji -bahut sundar bhavabhivyakti prastut ki hai aapne .badhai .
bahut sundar rchana
bahut achi lagi apki ye rachna....aaj se hi apko follow kar raha hun....
jai hind jai bharat
एक अरसा हो गया माँ,
मुझे रोये हुए
अपने हाथों से मेरे आंसू पोंछते वक्त
ना रोने की इक कसम दी थी तूने,
वो अब तक सँभाल रखी है मैने.....
...MAA hi to sachi hamdard hoti hai, uske aalawa kisi ke aage rona jo bemani hai...bahut achhi panktiyan..
एक अरसा हो गया माँ,
खुदा को देखे हुए,
एक अरसे से मैं बस यूँ ही जी रहा हूँ माँ.....
..sach khuda ko kisne dekha MAA ko dekh liya to khuda apne aap mil gaya..
..Maa ko samparpit marmsparshi rachna ke liye aabhar!
Aapke blog par aakar bahut achha laga..
Haardik shubhkamnayen!
nishabd ho gayi mai....ek sher yaad aa gayaa...kahi suna tha maine..
kisi ke hisse mein makan aaya...
kisi ke hisse mein dukan aayi....
mai ghar mein sab se chhota tha...
mere hisse mein maa aayi......
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