Wednesday, 17 October 2012

ख़ामोशी...




वो घिसटते कदमों से आ तो गया,
बन्द पलकों से देखता  भी रहा....
सिले लबों  से कहा भी बहुत कुछ....
मैं तिनका तिनका तोड़ता रहा,
वो लम्हा लम्हा गिनता रहा...
वक्त ए रुखसती पर बड़ा बेसब्र लगा,
पर जाते कदम इक बार भी न पलटे....
शायद एक और मुलाकात बाकी थी कहीं.... 

- kumar

2 comments:

सदा said...

वाह ... बेहतरीन

Anonymous said...

वाह - बहुत खूब

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द