वो घिसटते कदमों से आ तो गया,
बन्द पलकों से देखता भी रहा....
सिले लबों से कहा भी बहुत कुछ....
मैं तिनका तिनका तोड़ता रहा,
वो लम्हा लम्हा गिनता रहा...
वक्त ए रुखसती पर बड़ा बेसब्र लगा,
पर जाते कदम इक बार भी न पलटे....
शायद एक और मुलाकात बाकी थी कहीं....
- kumar
2 comments:
वाह ... बेहतरीन
वाह - बहुत खूब
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