Thursday, 25 August 2011

तेरे बारे में....



तेरे बारे में सबको बताऊँगा कैसे ?
ज़ख्म  दिल में बसे हैं,दिखाऊँगा कैसे ?

तू बेवफा तो नहीं था जो वादे से मुकर गया,
मगर ये सच ज़माने को सुनाउँगा कैसे ?

तेरे जाने पर कुछ और भी बिखरा था दिल की तरह,
वो जज़्बात अब फिर से सजाऊँगा कैसे ?

कह पाता, तो शायद पा ही लेता तुझे,
इस उम्मीद से दामन छुड़ाऊँगा कैसे ?

मुद्दतों बाद हँसते हुए देखा है,
फिर आज उसे मिलकर रुलाऊँगा कैसे ?

- कुमार 

Thursday, 18 August 2011

बढ़े चलो



भ्रस्टाचार को दूर करो,ये अवाम का नारा है 
मार भगाओ चोरों को अब हिन्दुस्तान हमारा है

बंद करो ये लूट खसोट,बंद करो ये घोटाले
राजी से ना गए अगर,तो होंगे सब के मुंह काले

आम आदमी जाग उठा है,आगे भी मत पड़ जाना
इतिहास बनाकर रख देंगे सब को है यह बतलाना

जनता का होगा राज जहाँ  ऐसा क़ानून बनायेंगे
विश्व पटल पर तब हम सच्चे लोकतंत्र कहलायेंगे

- kumar

Tuesday, 9 August 2011

मज़हब


मन किया कि आज ...
हिन्दू का चोला ओढकर
चला जाय लोगों के बीच ...
देखा,कटा फटा टँगा है दीवार  पर
दौड़कर गया मुस्लिम के घर,
सब नदारद ...
हवाएं धमका रहीं थी सन्नाटे को
उम्मीद के खम्भे पर चढ़कर
एक दो घर और झाँका,
सब चूल्हे धूल से सने पढ़े थे ...
बोझिल कदम फटकारने लगे वापस  घर ...
अचानक ध्यान गया चौखट पर
तो देखा
सारे मज़हब
गले मिलकर एक सुर में कुछ गा रहे थे....
हम इन्सान नहीं हैं......

- kumar

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द