Thursday, 16 June 2011

नादान


मेरी परछाई को देखकर तू खफा हो गया
ऐ नादान सँभल,मुहब्बत की भी हद होती है

जाना है तो फिर क्यूँ पलटता है बार बार
ऐ नादान सँभल,मुङने की भी हद होती है

कुछ कहकर फिर से चमन में बहार ला दे
ऐ नादान सँभल,अदाऔं की भी हद होती है

मत सोच मेरी मैं तो सदियों से प्यासा हूँ
ऐ नादान सँभल,अश्क बहने की भी हद होती है

मेरे साथ कयामत तक ना चल पाया तो
ऐ नादान सँभल,कसम देने की भी हद होती है ।

kumar...

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

मेरा मन पंछी सा said...

bahut hi sundar bhavmayi rachana hai....

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द