कितनी बेरंग थी,ये जिंदगी तुझसे पहले,
अन्धेरों में बसा था बजूद मेरा
समंदर सी प्यास होकर भी,
एक बूँद तक मयस्सर ना हुई कभी,
साया भी हँसता था हर रोज मुझपे
फिर एक,दिन चुपके से,
तेरी पलकों ने कुछ कहा
तेरी पलकों ने कुछ कहा
और अब कुछ ऐसे चमक उठे है मेरी आँखों के जुगनू
कि दिल करता है दूँ चुनौती सूरज को
अब कदम नहीं समझ रहे चाल मेरी,
मोड़ ना दूँ कहीं रुख हवा का
तेरे साथ होश भी इस कदर है,
कि खुद से भी परे हो चला हूँ अब
कुछ तो कह दो कि संभल जाऊं मैं,
कि यह हकीकत नहीं बस खाब है
कितनी बेरंग..........
-kumar
-kumar
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