कशिश
सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की...
Tuesday, 13 September 2016
जमीं पे कर चुके कायम हदें,
चलो अब आसमां का रुख करें
- अरविन्द
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जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
मुलाक़ात
कुछ पल तो हँसने दे मुझे,ना उदास कर तू घर जाने की बातें,ना बार बार कर दो लम्हे बीते होंगें,साथ बैठे हुए तू सदियो...
क्या मज़ाक चल रहा है ?
क्या मज़ाक चल रहा है परिंदों के बीच, आसमां को दौड़ का मैदान बना रखा है बड़ी हसरत थी उसे टूटकर बरसने की, मगर हौँसले ने उसे ...
बदलाव...
आजकल कोई हँसकर नहीं मिलता, गले मिलकर भी कोई दिल नहीं मिलता किस तरह समेटा है तूफां ने समन्दर को, कश्ती को डूबता मुसाफि...