सोचा था कुछ और मंजिल कुछ और हो गई,
जिस महफ़िल में हम गये,वही रुस्बा हो गई
राह ए मोहब्बत्त में,हमने निभाई हर सदा,
उनके लिए हर सदा,बस इक अदा हो गई
उम्र भर जिस हमसफ़र को कहते रहे हम शुक्रिया,
गौर से देखा तो साथ परछाई ही रह गई
उनके हर इक सितम को चुपचाप हमने सह लिया,
लेकिन हम पर सितम करना उनकी आदत हो गई
अपने लहू के रंग से लिखे थे कुछ यादों के गीत,
उन्होंने कर दी दुआ,और बरसात हो गई
-kumar