अब सब कुछ ओस की तरह लगता है,
सब नया,निर्मल,
अंकुरित होते पौधे जैसा...
एक ठहराव सा है...
ह्रदय के भँवर में उठने बाली,
भावनाओं की लहरें
अब असमर्थ हैं,
उम्मीद की दीवारों पर,
उस प्रतिध्वनि को उत्पन्न करने में,
जिसके शोर में भ्रमित होकर,
मैँ भटकता था इधर उधर...
जो मन रूपी पक्षी,
उन्मुक्त हो,
उड़ता था अनंत आकाश में,
वो अब लिपटा पड़ा है अस्तित्वहीन डाल से...
कल तक जो नकारता था हर अस्तित्व को,
आज वही,
निराकार का सृजन करने में लगा है...
यह कोई बदलाव नहीं है,
ना पुर्नजन्म है...
बस,
अब मेरे अंदर एक दीप जल उठा है,
प्रेम का...
कुछ बीज अंकुरित होने लगे है,
मिलन के...
-Kumar .