Saturday 28 May 2011

खयाल




कभी कभी सोचता हूँ 
की सूचीबद्ध करूँ अपने सपनों को
समर्थ जब होऊंगा,तो इन्हें पूरा करूँगा
फिर सोचता हूँ
तब कोई सपना ही कहाँ रहेगा
बस विलासिता होगी हर तरफ
न कोई तपिश होगी
न कोई कशिश
फिर जिंदगी आज की तरह रंगीन कहाँ होगी
न  होगा मज़ा जीने का
एक उम्मीद को थामे हुए
कितने सच्चे हैं ये अधूरे सपने......


kumar

Sunday 22 May 2011

अतीत

क्या  करूँ  कि  तेरी  याद  ना  आये  मुझे  कभी,
कितना  हँसू कि  जख्म  ये  ना  रुलाये  मुझे  कभी ?

कितनी  आहटों  में  हर  पल  दिल  मशगूल रहता  है,
अब  कोई  ख़ामोशी  ना  सताए  मुझे  कभी

बुत  बन  गया  खुदा,कितना  खुशनसीब  है ?
तू  किसी  जान  का  एहसास  ना  कराये  मुझे  कभी

वो  मुझे  अब  भी  चाहता  है,मेरा  ऐतबार  करता  है,
ये  पहचानी  सी  बातें  कोई  ना  सुनाये  मुझे  कभी

तेरा  ज़िक्र ए बेवफाई  किसी  से  करूँगा  कैसे,
डर  है,कोई  बेवफा  ना  बताये  मुझे  कभी

-kumar                                                         

Thursday 19 May 2011

खयाल



एक  शाम  सोचा  मैने
आज  सूरज  से  पूछता  हूँ 
कहाँ  जाकर  छुप  जाता  है  रोज,
पेरों  के  निशान  के  बिना 
आँखों  में  बाँधा  उसकी  तस्वीर  का  धागा 
और  चल  पडा,
थक  हारकर  जब  पहुँचा उसके  ठिकाने  पर 
तो  मंज़र  बदल  चुका  था 
लगता  है  आज फिर,
उसे  जाने  की  जल्दी  थी..........


-kumar

Tuesday 17 May 2011

खयाल

खुद से पूछता हूँ हर रोज 
कि क्या स्वार्थी हूँ मैं 
कोई आबाज भी नहीं आती 
एक उलझन सी बनी रहती है 
कितना खलता है मुझे समर्थ होना 
ढेरों उम्मीद लगा लेते हैं लोग 
क्यूँ न कर सका मैं 
अपनी जिन्दगी का समझौता 
माँ की छोटी सी खुशी के लिए 
शायद डरता हूँ भविष्य से 
कितना स्वार्थी हूँ मैं......




kumar...

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द